Monday, 5 November 2018

कुंभ मेला एक इतिहास


                   कुंभ मेला 'एक इतिहास'
              

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना माना जाता है माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी।खगोल घटनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है जब सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुंभ स्नान योग कहते हैं यहां स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन  माना जाता है।
 लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से हो गई थी समुद्र मंथन से निकले अमृत के कलश पाने के लिए देव दानव में युद्ध हुआ। जिसके फलस्वरूप अमृत कलश से अमृत की बूंद पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरा नासिक, उज्जैन, हरिद्वार एवं प्रयाग। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर, उज्जैन में  शिप्रा नदी के तट पर और प्रयागराज में गंगा नदी यमुना नदी और सरस्वती  नदी का तट जहां तीनों का संगम होता है।

 इन चारों स्थानों पर ही कुंभ मेला हर 3 वर्ष बाद लगाया जाता है इसके आयोजन का सही समय और तिथि धार्मिक और ज्योतिष शास्त्र के आधार पर होता है साथ ही यह ध्यान देने योग्य है कि प्रयागराज संगम में प्रत्येक वर्ष माघ के महीने में माघ मेला लगता है यही मेला 6 वर्ष में अर्धकुंभ और पूरा 12 वर्ष  में कुंभ मेला के  रूप में हमारे सामने आता है।

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